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वास्तुशास्त्र यह एक कालपनिक कहानी है ।
Thu, 15 Aug 2024
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वास्तुशास्त्र यह एक कालपनिक कहानी है । नाम और पात्र काल्पनिक हैं।

"................तमाम कोशिशो के बाद भी रीमा को कही नोकरी नहीं मिल रही थी!

रीमा बहुत परेशान थी। जिंदगी जीने के लिए पैसो कि जरूर थी! घर के सारे काम खत्म करके रीमा चाय के साथ पेपर पढ़ने बैठी। अचानक उसकी नजर एक विज्ञापन पर जाती हैं। जिसमें लिखा था, घर की देख भाल के लिए एक महिला की जरुरत है! और नीचे पता लिखा था। रीमा जल्दी जल्दी चाय पी और तैयार हो कर उस पते पर जा पहुँची। घर शहर से काफी हट कर था। एक वीराना सा नजारा चारो तरफ था। दूर- दुर तक कोई दिखाई नहीं देता है। रीमा सोचती हैं कि मुझे क्या करना है बस काम करना है और पैसे कमाना है।घर के दरवाजा पर आकर बेल बजाती हैं। अचानक दरवाजा खुल जाता हैं। और एक भारी आवाज आता है। अंदर आ जाओ।(आगे कि कहानी रीमा की जुबानी)मैं देखती हूँ कि दरवाजे पर कोई हैं ही नही, फिर भी दरवाजा अपने आप कैसे खुल गया। कोई बात नही बड़े लोगों का घर है कुछ तो अलग ही होगा। मैं अंदर जाती हुँ, पर अंदर भी कोई नहीं दिखता हैं। मै कुछ पल यहाँ वहाँ देखती हुँ। तभी एक आवाज आती हैं सामने कि कुर्सी पर बैठ जाओ । मै कुर्सी पर बैठ जाती हुँ, तभी एक 60-65 साल का आदमी पीछे से आता है। जब कि पीछे तो मेन गेट का दरवाजा था। जिधर से मै आई थी। फिर भी मै अपना परिचय देती हूँ। वो मै काम के लिए आई हूँ। आपका पेपर मे ऐड पढी थी। आदमी --- मुझे सब पता है । तुम यहा किस लिए आई हो, सब पता है। तुमको इस घर की देख भाल करनी है । .......इसे घर मे चार लोग रहते हैं । तुमको यही रहना होगा। उपर मे एक कमरा हैं उसी मे तुमको रहना है। महीने का 15000₹ हजार मिलेंगे। अगर मंजूर हो तो उपर जायो। और हाँ यहा किसी से भी ज्यादा सवाल मत करना। ...............मैने हाँ मे सर हिला दी और उपर के कमरे मे आई, अपना समान रख कर। कमरे कि सारी खिड़कियों को खोल दी। ऐसा लगता है कि पिछले कई सालो से यह घर बंद था। हर तरफ समान बिखरा हुआ था। ना जाने ये लोग कैसे रहते हैं इस घर मे। वैसे घर किसी राजा के महल से कम नही था।बेशकीमती समानो से इस घर को सजाया गया था। नीचे चारो तरफ से चार बड़े बड़े कमरे बीच मे एक बड़ा सा हॉल। उपर मे भी दो बड़े बड़े कमरे जिसमे एक कमरा मेरा था। इसके उपर भी चार कमरा था। शायद उपर वाले कमरे मे बाकी के लोग रहते होंगे। .............बस अभी मुझे गरमा गर्म चाय पीने का मन हुआ। अब मैं किचन खोज रही थी। चारो तरह कोई दिख भी नही रहा था। किससे पुछे। किचन खोजते खोजते पुरा घर घूम ली पर किचन नही मिला। मै काफी थक चुकी थी। अपने कमरे मे आकर लेट गई।तभी मुझे लगा की मैने सारा घर देख लिया, लेकिन अपने बगल वाला कमरा तो देखा ही नही। मै तेजी से भाग कर उस कमरे का दरवाजा खोली, और मै खुश हो गई सामने ही किचन था। मै अंदर आकर देखी तो ऐसा लग रहा था, किचन मे कई सालो से खाना ही नही बना हैं। चाय बनाने के लिए दुध, चीनी ,चाय की पत्ती भी नही है। यहा तो कोई समान है ही नही। मै क्या बनाऊ, कमरे मे आकर लेट गई। और कब आँख लग गई पता भी नहीं चली। आचानक कुछ लोगों की आवाज से नींद खुल गई। मै बाहर देखी तो रात हो चुकी थी। बाप रे 12 बज रहे थे। मै डर गई घर वाले क्या बोलेंगे। मै भाग कर नीचे आ रही थी तभी दो छोटे छोटे बच्चे , एक सुंदर औरत और वही आदमी हॉल मे बैठ कर कुछ खा रहे है। कुछ पल के लिए लगा की शायद ये लोग बाहर से अभी अभी आ रहे है। मै किचन से पानी लेने गई और यह क्या...? यहा तो सारा खाने पीने का समान भरा हुआ है। जब कि मै कुछ समय पहले ही देख कर गई थी। यहाँ कुछ भी नहीं था। पर ऐसा लग रहा है की यहा कुछ बना नही है। तो यह लोग क्या खा रहे हैं। खौर मैं अपने लिए कुछ बना और खा कर सो गई। ..........सुबह करीब 7 बज रहे थे। मेरी आँख खुल गई। जल्दी जल्दी सीधे किचन मे भागी। सोचा पहले चाय बना लू। पर यह क्या यहा तो फिर से खाने पीने का कोई समान नही है। कल भी ऐसा ही हुआ था दिन मे कुछ समान नहीं था और रात मे सारा समान था।क्या यह मेरी आँखों का धोखा हैं , या कुछ और बात है। मैने आवाज दी कोई है क्या । दो, तीन बार आवाज देने के बाद फिर से पुरा घर का चक्कर लगा लिया पर कोई मिला ही नही। तभी मुझे लगा की मेरे कमरे मे कोई हैं। वहाँ जा कर देखती हूँ तो एक कागज का टुकड़ा रखा था, जिस पर लिखा था। जो तुम्हें चाहिए वो समान का नाम लिख दो । यहाँ चिल्लाने से कोई फायदा नही है।खौर मैं खाने और पीने के लिए समान का नाम लिखी । पर मैं सोचने लगी की इसे देना किसे हैं। समान का नाम तो लिख दिया है। यही छोड़ देती हूँ। सारा घर तो उन्हीं का है। मैं सारे कमरे की साफ सफाई करने लगी। फिर किचन साफ करके अपने कमरे मे चली आई। ओह यह क्या मैने जिस कागज पर वो समान लिखा था। वह मिट गया है बिल कुल सादा हो गया है। पास ही चाय और खाने खा समान रखा है। .................कुछ पल के लिए मैं समझ नही पा रही थी। ये सब किसने किया। खौर मै चाय पी और नाशता करके लेटी की मुझे नींद आ गई। और फिर अचानक बच्चो की आवाज से नींद खुल जाती हैं। मैं उठ कर नीचे आती हुँ,तो आज भी रात 12 बज चुके थे। नीचे सब खाने मे लगे थे। मै किचन मे आई और पानी लेने लगी। फिर मैने देखा किचन मे खाने पीने का समान भरा हुआ है। मैं देखना चाहती थी, ये सब क्या खा रहे हैं। मै धीरे धीरे इनके पास आती हुँ यह क्या यह तो किसी इंसान के जैसा देखने वाला चीज को खा रहे हैं। मै डर कर अपने कमरे मे आ जाती हुँ। अब मैं समझ नहीं पा रही थी, कि आखिर क्या चल रहा है । यहा दिन मे कोई नहीं रहता है और रात होते ही सब आ जाते हैं। क्या बच्चे स्कूल नही जाते । ये आदमी और यह औरत कौन है। सोचते सोचते नींद आ गई। जब उठी सुबह के 9 बज गये थे। रात की सारी घटना याद करके फिर से डर जाती हुँ। आज मै सफाई करते करते उपर के कमरे मे जा पहुँची और मैने देखा कि एक कमरा मे ताला लगा हुआ था।मैं उसे बहुत मुश्किल से खोलती हूँ, और अंदर जाती हुँ। यह तो स्टोर रुम था। चारो तरफ टूटा, बिखरा समान पड़ा था। मेरी नजरे वहा पड़े, कुछ पुराने अखबार पर गई।......... यह अखबार पर तारीख़ आज से 20 साल पहले का था। अखबार उठाया उसमे एक फोटो था, और नीचे लिखा था, कार एक्सीडेंट मे एक ही परिवार के चार लोगों की मौत। जिनमे एक महिला, एक पुरुष और दो बच्चे भी है। पता भी यही का था। यह खबर पढ़े कर मेरी पैरो तले जमीन खिसक गई। डर से मै थड़ थड़ कांपने लगी। अब मै जल्दी से वहाँ से भागना चाहती थी। मै दौड़ कर नीचे भागी। पर ये दरवाजा खुल क्यो नही रहा है। मै दरवाजा को जोर -जोर से पीटने लगी। तभी वही आदमी का आवाज फिर से आती है। "तुम यहाँ से कही नही जा सकती । तुम आई हो अपनी मर्जी से पर जाओगी, जब हम चाहेंगे। मै रोने लगी और जोर जोर से दहाड़ मार कर चिल्लाने लगी। "नही मुझे छोड़ दो, "मुझे छोड़ दो........... और तभी मेरी नींद खुल जाती है। ओह नो...... यह तो मेरा अपना घर है। तो.. तो वह सब एक सपना था। बाप रे इतना भयानक सपना.................

लेखक 
Dr. S. Kumar

 
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